लाइफस्टाइल डेस्क. भोपाल के मानव संग्रहालय के हिमालय ग्राम मुक्ताकाश प्रदर्शनी परिसर में गुरुवार से लोसर फेस्ट में लद्दाख के लोग पहुंचे। लद्दाखी नव वर्ष के उपलक्ष्य में आयोजित इस फेस्ट में लद्दाखी किचन और मने चक्र में सुख और समृद्धि की प्रार्थना की गई। यहां लोगों को लद्दाख के रहवासियों के सांस्कृतिक और अनुष्ठानिक रीति रिवाजों के बारे में जानने को मिल रहा है। जैसे- लद्दाख में किसान खेतों में जाते हैं तो साथ में गुर गुर चाय ले जाते हैं और इसे एनर्जी ड्रिंक की तरह इस्तेमाल करते हैं।

500 साल से ऐसे बन रही है चाय
लद्दाख से आईं स्टाइन ने बताया हमारे यहां किचन को चंगसा कहा जाता है। गुर-गुर चाय बनाने का तरीका थोड़ा अलग है। इसे तैयार करने के लिए एक बर्तन में पानी लेकर उसे चूल्हे पर रखकर चायपत्ती डालते हैं। जितना उबालेंगे उतना ही रंग आएगा। इसमें नमक, बटर और दूध का मिश्रण बनाते हैं बाद में इसे उबाली गई चायपत्ती के पानी को गुर गुर में डालकर मिलाया जाता है। मिलाने के बाद इसे एक बार और उबालते हैं।

स्टाइन कहती हैं किहमारे यहां पारंपरिक बर्तनों को लंग्स कहते हैं। लकड़ीऔर पीतल से बने बेलनाकार बर्तन जिसमें चाय की सामग्री को डालकर मिलाते हैं उसे गुर-गुर कहते हैं। इसी के आधार पर चाय का नाम गुर-गुर पड़ा है। पीतल की केतली, जिसमें चाय के मिश्रण को खौलाया जाता है उसे तागु कहते हैं।



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The taste of 500 years old Gur Tea is unique, it is the salty energy drink of Ladakh


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